
नहीं कहा जो मैंने,
तुमने वो सुना क्या कभी ?
मेरे अनकहे जज़्बातों से
क्या हुए तुम वाक़िफ़ कभी ?
वहीं जज़्बात और बातें जो मेरे दिल में दबी,
जो शब्दों में मैंने न कभी ज़ाहिर कीं ।
वो शाम ढलते ही मेरी आँखों में
तुम्हारे आने का इंतज़ार,
महसूस हुआ क्या तुम्हें,
जो ना किया अल्फ़ाज़ से बयान?
वो सब्ज़ी के छौंक में
मसालों संग घुला थोड़ा-थोड़ा प्यार,
पता चला तुम्हें कभी क्या
इसके ज़ायक़े का राज़?
वो उम्मीद की बस दो पल
आँख भर देखो मुझे तुम,
वो हसरत के प्यार से सराहो कभी,
कहना बहुत हैं, हैं एहसास अनगिनत
पर तुम्हारी मसरूफ़ियत दिवार बन
बीच हमारे खड़ी ।
राह तकते करूँ मैं तुम्हारा इंतज़ार,
दरवाज़े के दस्तक से बढ़ती दिल की रफ़्तार,
घर आते ही देख तुम्हारे चेहरे पर
मासूम मुस्कान थकान भरीं,
चुटकी में मिटतीं मेरी सारीं नाराज़गी,
जो खलती हैं कहीं दिल को
बेपरवाही तुम्हारी,
चुपचाप दब जाती है
मन के तह मे बेचारी!
बस दिल से सोचतीं हूँ अपने आप से ही,
के तुमने सुना हैं क्या,
उन बातों को कभी,
वहीं बातें जो मैंने कभी शब्दों में ना ज़ाहिर कीं….!
Nice one
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Thank you Vikram 😊
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Very meaningful Sonali !!…
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Thank you Vaishali 😊
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Khup sunder
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Thank you Sujata 🙂
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Touched my heart..love it.
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Thank you Jyotsna 😊
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Really nice ma’am ☺️
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Thank you Rajat 😊
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