पापा और मैं
हर बार जब मैं बंबई का घर छोड़कर
दिल्ली आती हूँ,
अपनी आँखों की नमी को
बड़ी सी मुस्कान के पीछे
बख़ूबी छिपातीं हूँ ।
पापा कहीं मेरी उदासी न देखें
यही डर मन में रहता है,
आख़िर बेटी का घर बसाने हर पिता
ये बिछड़ने का दुख हँसकर जो सहता है!
जानती हूँ मैं तो अपने भरे पूरे घर मुड़कर ससुराल जाती हूँ
पर जाने से मेरे पापा का आँगन हर बार सूना कर आती हूँ।
अकेले होकर भी पापा “मैं बिलकुल अच्छा हूँ”, हर बार यू कहते हैं,
इक घर में नहीं तो क्या हुआ हम इक दूसरे के दिल में हमेशा संग रेहते है !
– सोनाली बक्क्षी
०९/०७/२०२१
Lovely and so true 🌹
Like the way you capture thoughts and feelings into words 👍
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Thank you 😊
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Beautiful!
Every woman can relate herself with your words. Loved it
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Thank you Madhu 😊
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Very true Sonali… genuinely expressed by you like alwaz!!
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Thank you Vaishali. 😊
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Very emotional poem.
Beautifully written..😍😍
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Thank you 🙏😊
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