मिस से मिसेज़ बनते बनते,
मेरे अंदर की ‘मिस’
मुझसे ही यू छूट गई,
बीवी, बहूँ, माँ बनते बनते मैं,
ख़ुद क्या हूँ
ये मैं ही भूल गई !
मल्टी टास्कर की भूमिका में
मैं ऐसे फिर खोई,
घर संसार के टेंशन में देखो
कितनी रातों को न सोई!
सबके गीले तौलिए,
जूते, चप्पल और मोज़े,
मेरे ही हाथों को जैसे
घर भर बिखरे खोजें !

फ़रमाइश के लिस्ट की देखो
लगती लंबी कतार,
पूरी करते करते जिसको ,
मेरा होता हाल बेहाल !
सालो बीते, यूँही चलता रहा
घर का कारोबार,
सोचा मैंने कभी तो होगा
सबको ये एहसास,
के सबका करते करते मैंने
अपने आप को खोया,
मेरे इस खोने पर देखो,
कोई पल भर भी ना रोया !!!
फिर समझ आई मुझे एक दिन,
लाख पते की बात,
जब मैं ही ख़ुद का मोल न समझी,
तो दूसरों से क्यों रहूँ निराश??

बदला अपना जीने का ढंग यू,
थामा ख़ुद का ही हाथ,
ख़ुद की सेहत, मन की ख़ुशी को
दिया प्रथम फिर स्थान।
जितना हक़ बिन माँगे ही मैंने
सबको मुझ पर दे रखा था,
वाजिब अपने हिस्से का हक़ ख़ुद पर
मैंने अब ले लिया था!
आखिर ख़ुद ही ख़ुद को स्वस्थ और प्रसन्न
मैं ख़ुद से जो ना रख पाऊँगी,
तो मुझसे जुड़े हर रिश्ते को बख़ूबी
कैसे मैं निभाऊँगी??
– सोनाली बक्क्षी
१६/०२/२०२१
Superb!!!…very true Sonali.
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Thank you Vaishali 😊
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Powerful. Loved it. :))
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Thank you 😊
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