लेकर सात फेरे हमने वादे किए,
रस्मों -रिवाजों से हम बंध गए,
पर क्या ये मंडप, पंडित, कुछ घंटों के
मंत्र-जाप हमें सच में बांध पाएँगे ?
एक दिन का मिलाप है जो अब हम उम्र भर निभाएँगे !
क्या सच में मुमकिन है सिर्फ़ सात फेरों से
दिलों का एक पल में मिल जाना?
मात्र सात फेरों से ही क्या तय होता है
जीवन का सुखमय होना?
या दिये संग बाती बन जलना पड़ता है?
रोज़ थोड़ा – थोड़ा मरना पड़ता है?
सफ़र के हर पड़ाव में सहारा बनना पड़ता है?
बड़ी से बड़ी ग़लती को एक पल में नज़रअंदाज़ करना पड़ता है?
बरसों लग जाते है उन सात वचनों को निभाने में जो मुस्कुराकर सात मिनटों में लिए जाते है,
कभी हँसकर, कभी रो कर, कभी नाराज़ होकर,
रूठकर,मनाकर,ख़ुद से ख़ुद का दिल बहलाकर, एक-दूसरे को ख़ामियों संग अपनाकर,
ता-उम्र साथ निभाते हैं,
त्याग स्वयं को ‘हम’ बनकर ही
जीवनसाथी कहलाते है!
– सोनाली बक्क्षी
१८/१०/२०२०
Excellent I really liked it very much
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Thank you 😊
I am glad to know you liked it.
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Very nice Sonali …
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Thank you Vaishali 😊
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बहुत बढ़िया
क्या आप बता सकते हैं
आपने वीडियो कोनसी app से बनाया
प्लीज
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Thank you.
I have used Kinemaster for making the video.
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Thenks
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