चूँ-चूँ-चीं-चीं करतीं चिड़ियाँ,
हर आँगन में फुदकतीं चिड़ियाँ,
खिड़कियों के फ़लक, रोशन-दान के आड़े,
घास बुन-बुन घोंसले बनातीं चिड़ियाँ ।

सूरज कि पहली किरन के संग
स्वर सुरीले यूँ गाती चिड़ियाँ,
नन्हें राकेश के कोमल मन को
खुश कर बहुत ही भाँति चिड़ियाँ ।
कहते थे बाबा, “ सुन लो राकेश,
पंखा तेज़ न चलाना तुम।
कोटर में घर उसने बना रखा है,
अपनी लापरवाही से बेटा
उसे चोट न पहुँचाना तुम ।”

बचपन बीता, गुज़रे साल,
गलियाँ छूटीं पुरानी दिल्ली की,
अशोक विहार में राकेश का बना निवास।
इस शहर का दिन प्रति दिन
तेज़ी से हुआ औद्योगिक विकास,
हर तरफ़ फ़्लाई-ओवर, ऊँची इमारतें,
कंक्रीट का जंगल दिखे आस-पास।

पेड़ कटें, प्रदूषण आया,
टेलीफोन कंपनियों ने भी हर तरफ़
ऊँचा – लंबा टावर लगाया।
वाईफ़ाई, नेटवर्क,कनेक्टिविटी हो गए ज़रूरी,
इनके बिना तो सोचना नामुमकिन,
ज़िंदगी सबकी होगी आधी-अधूरी।
अब सिर्फ़ रिक्वायरमेंट नहीं, टेक्नोलॉजी और एडवांसमेंट प्राथमिकता है,
इन सब के चलते दूर कहीं इस शहर से
खो गई राकेश की ‘प्यारी चिड़िया’ है ।

बचपन की बातों को सालों बाद भी दिल से
राकेश आज तक बाँधे है,
भुलाया नहीं प्यारी चिड़िया को,
उसे शहर वापस बुलाने की
मन में ठाने है!
शहर वापसी चिड़िया की करवाने,
घोंसलों को हर घर-आँगन में टाँगना है,
जिस चिड़िया का आशिया हमने छीना,
उस ग़लती को हमें ही मिलकर सुधारना है ।

दिल से पुकारें है राकेश तुम्हें,
“आओ ना मिलकर कुछ ख़ास करें,
जिस प्रकृति की सुंदरता को हमने बिगाड़ा
उसे फिरसे सजाने का मिल-जुलकर एकजुट प्रयास करें !”
– सोनाली बक्क्षी
२१/०९/२०२१
My poetry is written for and humbly dedicated to the amazing work of sparrow conservation by Hon’ble Shri. Rakesh Khatri ji, a renowned environmentalist, who is also known as the ‘Nest Man of India’. You can read more about him and his work on https://www.ecorootsfoundation.org/about
Awesome 👏🏻👏🏻👏🏻👏🏻
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Thank you Madhu 😊
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Very nice Sonali…matches with the current scenario.
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Thank you Vaishali 😊🙏
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Well said. His dedication is well appreciated.
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Thank you. Yes his work is commendable indeed.
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