सात फेरे लेकर, मुझे कन्यादान में देकर,
बेटी से बहूँ बनते ही मेरी विदाई हो गई,
जिनकी थी मैं राज दुलारी, प्यारी बिटिया, लाड़ों रानी,
बनके उन्हीं की आँखों का पानी
क्षणभर में देखो मैं पराई हो गई !
पापा कहते थे मैं हूँ प्यारी गुड़िया
आँगन की चूँ-चूँ करती चिड़िया,
उनके जीवन का मैं हूँ अभिमान,
मुझमें ही बस्ती है उनकी जान ।
माँ कीं आँखों का मैं तारा,
मुझमें समाता उनका विश्व सारा,
बहन कि मैं हूँ साथी- सहेली,
भाई कि प्यारी पक्की चेली,
इन सभी के संग मैं थी एक जान,
पीछे छोड़ सभी को फिर भी,
संग तुम्हारे ही बस अब मेरा सम्मान ।
बातों से मेरी परेशान न होना,
ख़ुश हूँ मैं, तुम जीवनसाथी हो,
सुख-दुख तुमसे जुड़ा हुआ अब
जैसे दिये संग बाती हो,
पर मायका छोड़ना इतना आसान नहीं है,
मन भारी है, आँख भर आयी है,
जाने क्यू जग में है प्रचलित अब भी
बरसों पुरानी जो प्रथा बनाई है?
पती बनकर भी बेटा बेटा ही रहता हैं
पत्नी बनते ही फिर बेटी क्यों पराई है ?
– सोनाली बक्क्षी
३०/१०/२०२०