ज़िंदगी

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समय-समय पर रिश्ते बनते हैं,

अकस्मात् ही पंछी बन उड़ जाते हैं,

‘मिलना’ चाहें हम ख़ुद चुनते हैं,

बिछड़ने पर नियंत्रण किसी का न रहे ।

जिसकी न की हो कभी कल्पना,

अनुभव उसका हर रोज़ करवाती हैं,

ये किताब नहीं ज़िंदगी हैं साहब

ये अलग ही रंग दिखलाती हैं ।

सही-ग़लत, काला- सफ़ेद,

भिन्न प्रकार हैं, हैं भेद कई,

पर जीवन का आचरण है

मिश्रण रंगों का

विभाजन जिसका संभव ही नहीं ।

कहा जो मैंने सच है बिलकुल,

इसमें कोई दो राय नहीं,

नये लोग, नये किरदार,

अनेक भूमिकाएँ दर्शाती हैं,

अरे ! ये किताब नहीं ज़िंदगी हैं साहब,

ये अलग ही रंग दिखलाती हैं ।

जिन्होंने कभी कुछ किया न हमारा,

उनका सहारा हमें बनवाती है,

और जिनका हमने किया नही कुछ

उनसे बिन माँगे मदद दिलवाती हैं !

पल में राजा पल में फ़क़ीर,

पल में आँखें खोल जाती हैं,

चकाचौंध से धुँधलाये नज़रों को

जीवन का सार समझाती हैं ।

ये किताब नहीं ज़िंदगी हैं साहब,

ये अलग ही रंग दिखलाती हैं,

ये अलग ही रंग दिखलाती हैं !

– सोनाली बक्क्षी

२३/०९/२०२०

16 thoughts on “ज़िंदगी

  1. Very true Sonali!!…

    The pain of life’s unexpected negative experiences by dear ones and the most trusted people and positive experiences by unknown people and unknown forces… Colourful life!!

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